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"कितने अजीब हो तुम / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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16:03, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

उसने झल्लाकर कहा-
”कितने अजीब हो तुम
तुम्हारा बुढ़ापा अभी भी
बात-बात में असभ्य की तरह हँसता है“
”सच कहते हो मेरे संजीदा दोस्त
मुझमें अभी भी
एक नादान बच्चा बसता है
जो मुझे बूढ़ा होने नहीं देता“।
-3.3.2015