भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बादरे! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:41, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

खंभात की खाड़ी की ओर से उमड़ते-घुमड़ते
आते बादलों को देखकर

गदबदे-गदबदे, साँवरे-साँवरे,
आ गये बादरे!

केश बिखरे हुए, आँख अंजन-अँजी,
बीजुरी दोलड़ा स्वर्णकंठी सजी,
रूपवन्ती किसी गोरटी की मदिर-
मस्त-माते नयन में सजल याद ले!
आ गये बादरे!

छमछमाते चरण में ठुमक मणिपुरी,
लंक में है लचक, ओठ पर बाँसुरी;
झाँवरी-झाँवरी, दूबरी-दूबरी-
आ गये हैं, धरा को लगाने गले!
आ गये बादरे!