भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तब इच्छा थी / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:44, 16 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
तब इच्छा थी
बात हो
तुम पूछो, ‘मेरी हो न?’
या कि फिर,
‘कैसी हो?’
वह क्षण
टल गया
या किसी अन्य
लिलार जड़ गया
जब तक लौटे तुम्हारे स्वर-
सीप-सा मेरा मन
सीप-सा मेरा मन
दो फाँक होकर
खुल गया