भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुनो सहैया / सुनीता जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:30, 17 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

सुख का तो, हाँ,
पता नहीं,
दुःख में थे पर
वहीं-वहीं
रोने को दे-दे
काँधा

मैंने पर यह
कभी न सोचा
जिस काँधे पर रोए
वह रोया कितना
काँधा

याद मुझे है यह भी
तुमसे दोनों हाथों ले-ले
झोले अपने डाला,
विस्मय क्या जो
झोला,
खाली का खाली
रहा सदा

सुनो सहैया,
मैं तीरों के पार चली-
अपने नाटेपन से,
अपने खोटेपन से
ऊब-ऊब, अब
डूब चली

आना हो जब
आ जाना
ना आओ तो तुमको
दे जन्मो आशीष, चली

सुनो सहैया,
बहुत किया,
यह जान, तुम्हीं को प्यार,
चली।