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वृन्त पर
अन्तिम विवर्ण पंखुरी ज्यों
हार रही काल से
डूबते, जल की सतह पे
छटपटाते
हाथ से
उस विदा-बेला विदारक
मन्त्र वे
स्वस्ति के!