भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झील / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त देवलेकर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:11, 21 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

1
हज़ारों शीशे
रह–रहकर चमक उठते हैं
धूप इस तरह
झील के जालीदार दर्पण में
झाँकती है

2
मारवा का कोमल रिषभ है
ढलता सूरज
एक मुलायम आग
झील में जल उठी
सूरज पिघल रहा

3
झिलमिलाती रोशनियों के
पिलर गड़े हैं
पानी में
यह शहर
झील की बुनियाद पर
खड़ा है