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"मन का मीत / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'" के अवतरणों में अंतर

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18:08, 21 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

अंतर घट में घूम रहा हैं
तुम्हारे नाम का ही साया
जिव्हा तक आते आते
खो जाती है क्यो
शब्दों की माला
चेहरा तुम पढ़ न पाये
मौन व्यथा
क्या पढ़ पाओगे
अभिशप्त अधुरेपन में
क्या साथ निभा पाओगे ?
बहती नदी के दो किनारे
आपस मे कब मिल पाए हैं
प्रेम बना जब मीत हृदय का
तब ही दोनों मिल पाए हैं