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धूप तापते आँगन और उसारे वाले,
कहाँ गए वो सूरज दिन जड़कारे वाले?
रातें गुरसी की, अलाव की
कथरी-गुदड़ी के अभाव की,
जो, जैसी भी रही, किंतु थीं-
ठीक-ठीक अपने स्वभाव की।
मीठे गए। बचे सूरज दिन खारे वाले।
बातें कथा-वार्त्ताओं-सी
बोली-बानी में माँओं-सी,
लिए हुलास ठहाकों वाली-
चढ़ीं चंग ऊँचे भावों-सी;
सुंदर के सूरज दिन: माटी-गारे वाले।
जातें सात जात-सी होकर
एक पाँत की निजता खोकर,
न्यायदेवता सहज सुलम थे
पंचों में परमेसुर होकर,
सहमति के सूरज दिन ठाकुरद्वारे वाले।