भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दीवारों पर खूँटी / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:26, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

दीवारों पर खूँटी, कील-सा ठुका हूँ मैं!
चुनने को कहते
चुन लेता सिंहासन।

आधा अब धँसा हुआ;
आधा कुंठित मन।
डूंगर सूखे अकाल भील-सा झुका हूँ मैं!

उगे नहीं शालबीज
मंत्रित कर बोया था,
आँख बचा बाहर से
भीतर मन रोया था;
आते-जाते समाधि खेत पर रुका हूँ मैं।

जंग लगी बाहर से,
भीतर दीमक चाटे,
खँडहर हुए ये दिन
भय भरते सन्नाटे;

ब्याज अभी बाक़ी है मूल भर चुका हूँ मैं।