भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चूँ-चुनाँचे अगर-मगर / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:41, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

चूँ-चुनाँचे।। अगर-मगर।। या।। कहने का मेरा मतलब ये,
दौड़ाते ही रहे अनिश्चित भाषा के घोड़े अब तक ये।

पूरा हुआ न मतलब, खुद भी रहे अधूरे,
जादूगर होने निकले, हो गए जमूरे;
शब्दों की इस जगर-मगर में वाणी से बिल्कुल बेढब ये।

साध्य, साधनों की ये कैसी खींचातानी,
भाषा में असमर्थ नहीं थी मेरी नानी;
अर्जित करने को निकले, पर-कोई बताए किस दिन, कब ये?

शायद किसी बात की धरती ठोस नहीं है,
वक्ता और प्रवक्ताओं को होश नहीं है।
जु़बाँ लड़खड़ा जाती इनकी अपनी पर आते जब-जब ये,

चूँ-चुनाँचे अगर-मगर।। या।। कहने का मेरा मतलब ये,
दौड़ाते ही रहे अनिश्चित भाषा के घोड़े अब तक ये।