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हिली मसीतें, मंदिर हिलते, हिली ज़मीनें,
वर्षों के श्रम गए अकारथ खून-पसीने;
किस मुँह को लेकर जाएँगे, ये क़ाबे में, वो काशी में,
फर्क़ नहीं रह गया जरा-सा हममे या कंजर साँसी में।
आज कलेजे मुँह को आते, दिल गहरे डूबा जाता है-
पहले से हो गए आज हम और कमीने।
सबको दे भगवान पेट-भर, सुखी सभी को अल्ला रक्खे,
घर में खैर मनाती माएँ, पिता धैर्य के चोखे सिक्के,
रखवाली-सी राखी आए, जगर-मगर दीवाली होली-
रहें सलामत पल-छिन हँसते, रहें सलामत वर्ष-महीने।
अंधी श्रद्धा के आँचल में पड़े हुए हम आज बेख़बर,
डुबो रहे है क्यों अपने ही पोत किनारों पर ला-लाकर?
कोतवाल घर में सोए हैं, कप्तानों ने अधिक चढ़ा ली-
नहीं रह गए कोई क़ायदे, नहीं रह गए कोई करीने।
हिली मसीतें, मंदिर हिलते, हिली ज़मीनें,
वर्षों के श्रम गए अकारथ खून-पसीने।