भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पेआर के परिभासा / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह=हम्मर लेह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:45, 18 मई 2018 के समय का अवतरण
आंख!
अएना होइअऽ
दुख के/दरद के
पिआर के/नफरत के
लेकिन अप्पन दिल ...
ई त अकेले रहइअऽ हमेसा
धक-धक करइत
एक्कर एगो अलग होइअऽ भासा
ऊ भासा के बूझे वाला
जे होइअऽ
उहेसमा पबइअऽ दिल में
बहुत अन्दर तक।