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यह भण्डार भवन जो अन्न भरो गरुआतो।
जहँ समूह नर नारिन को निस दिवस दिखातो॥203॥
आगन्तुकन सेवकन हित सीधन जहँ तौलत।
थकित रहत मोदी अबो सो सीध न बोलत॥204॥
मनुजन की को कहै मूँसहूँ तहँ न दिखाते।
तिनको बिलन भुजंग बसे इत उत चकराते॥205॥