भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कजली 3 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:06, 20 मई 2018 के समय का अवतरण

कहर नजर कै माला जेवर ओठ लाल गुलाल रामा।
हरी बाचउ काला बाबा बरतरवाला रे हरी॥टेक॥
गोरा चिट्टा चेहरा पर बालमक जाँद से आला।
हरी बाल नाग-सा काला घूँघर वाला रे हरी।
जहरीला जिउमार दिये बहु जालिम तिरछी टोपी रामा।
बना फिरहु आफत का परकाला रे हरी।
कठिन कठिन उज्जड़ करि गैलेन केतने जेकरे कारन रामा।
लदि गैलेन कितने डामल के सजा को रे हरी।