भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कजली / 3 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:52, 21 मई 2018 के समय का अवतरण

॥नटिनो की लय॥

बन बन गाय चरावत घूमो! ओढ़े कारी कमरी।
तुम का जानो रस की बतियाँ? हौ बालक रगरी॥
बेईमान! दान कस माँगत गहि बहिंयाँ हमरी?
सीखौ प्रेम प्रेमघन! अबहीं, छोड़! मोरी डगरी॥7॥

॥दूसरी॥

नैना पापी मानैं नाहीं प्यारे! ये काहू की बात।
लाख भाँति समझाय थके हम करि-करि सौ सौ घात॥
चलत छाँड़ि कुल गैल बनै बिगरैल नहीं सकुचात।
छके प्रेममद मस्त प्रेमघन तकत यार दिन रात॥8॥