भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कजली / 14 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:24, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
ठाह की लय में
"तोह के सोहै हमरौ सुन्दरी कुसुम कै चुनरो" की चाल
सैयाँ सौतिन के घर छाए, सूनी सेजिया न सोहाय॥
गरजैबरसै रे बदरवा, मोरा जियरा डरपाय।
बोलै पापी रे पपीहा, पीया! पीया रट लाय॥
बरजे माने ना जोबनवाँ; दीनी अंगिया दरकाय।
पिया प्रेमघन बेगि बुलावो अब दुख नाहीं सहि जाय॥30॥