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"कजली / 14 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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ठाह की लय में

"तोह के सोहै हमरौ सुन्दरी कुसुम कै चुनरो" की चाल

सैयाँ सौतिन के घर छाए, सूनी सेजिया न सोहाय॥
गरजैबरसै रे बदरवा, मोरा जियरा डरपाय।
बोलै पापी रे पपीहा, पीया! पीया रट लाय॥
बरजे माने ना जोबनवाँ; दीनी अंगिया दरकाय।
पिया प्रेमघन बेगि बुलावो अब दुख नाहीं सहि जाय॥30॥