भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कजली / 19 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:25, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
नवीन संशोधन
सैयाँ अजहूँ नाहीं आय! जियरा रहि-रहि के घबराय॥
घिरि घन भरे नीर नगिचाय! बरसैं, पीर अधिक अधिकाय॥
दुरि-दुरि दमकै दामिनि धाय। मोरा जियरा डरपाय॥
सोही हरियारी छिति छाय। बिच-बिच बीरबधू बिखराय॥
मोरवा नाचै हिय हरखाय। पपिहा पिया! पिया! चिल्लाय॥
कर पग मेंहदी रंग रँगाय। सूही सारी पहिरि सुहाय॥
सखियाँ झूलैं कजरी गाय। मैं घर बैठि रही बिलखाय॥
झिल्लीगन झनकार सुनाय। दादुर बोलैं रोर मचाय॥
पिया प्रेमघन ल्यावो, हाय! अब दुख नाहीं सहि जाय॥