"कजली / 32 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:01, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
विकृत विशेषता
खँजरी बालों की लय
औरन से रीति, राखि किहले अनीति, तैं देखाय झूठी
प्रीति, फँसाये जटि-जटि कै रे साँवलिया॥
नैनवाँ नचाय, मन्द-मन्द मुसुकाय, लिहे मनहिं लुभाय,
ठाट ठटि ठटिकै रे साँवलिया॥
गोकुल गलीन, लखि सहित अलीन, बिनये तैं बनि दीन,
साथ सटि सटिकै रे साँवलिया॥
ऐसे चित चोर! चित चोरि चहुँ ओर, किहे सोर नित
मोर, नाव रटि रटिकै रे साँवलिया॥
प्रेमघन पिया, लगि सौतिन के हिया, तरसाये मोर
जिया, बात नटि नटिकै रे साँवलिया॥56॥
॥दूसरी॥
कहि नहिं जाय, कर मीजि पछताय, रही मन समझाय,
तैं सताये दम दै-दै रे साँवलिया॥
देखि धाय धाय, बरबस पास आय, झूठी बातन बनाय,
बिलमाये कर धै-धै रे साँवलिया॥
ऐंठि इतराय, मन्द-मन्द मुसुकाय, बाँके नैनवाँ नचाय कै,
चोराये चितलै लै रे साँवलिया॥
प्रेमघन हाय! कबहूँ न गर लाय, मिले मन हरखाय,
तैं छली छल कै-कै रे साँवलिया॥57॥