भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कजली / 56 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:31, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
द्वितीय भेद
दून
बुँदेलवा
'बंसिया बजावै गोपी कान्ह रे बुँदेलवा'-की लय
मिलल बलम बेइमान रे बुंदेलवा॥टेक॥
हमसे प्रीत रीत नहिं राखै, औरन संग उरझान रे बुँदेलवा॥
रतियाँ जागि भागि उठि भोरहिं, आवइ घर खिसियान रे बुँदेलवा॥
पिया प्रेमघन की चालन सों, मैं तो भई हैरान रे बुँदेलवा॥101॥
॥दूसरी॥
उमड़े जोबनवन पर परि बुँदवा होइ जायँ चखना चूर रे बुँदेलवा॥
तन दुति देखि लजाय दमिनियाँ दौरै दूरै दूर रे बुँदेलवा॥
पिया प्रेमघन अलकन लखि घन कँहरत छोड़ि गरूर रे बुँदेलवा॥102॥