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"कजली / 56 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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द्वितीय भेद

दून
बुँदेलवा

'बंसिया बजावै गोपी कान्ह रे बुँदेलवा'-की लय

मिलल बलम बेइमान रे बुंदेलवा॥टेक॥
हमसे प्रीत रीत नहिं राखै, औरन संग उरझान रे बुँदेलवा॥
रतियाँ जागि भागि उठि भोरहिं, आवइ घर खिसियान रे बुँदेलवा॥
पिया प्रेमघन की चालन सों, मैं तो भई हैरान रे बुँदेलवा॥101॥

॥दूसरी॥

उमड़े जोबनवन पर परि बुँदवा होइ जायँ चखना चूर रे बुँदेलवा॥
तन दुति देखि लजाय दमिनियाँ दौरै दूरै दूर रे बुँदेलवा॥
पिया प्रेमघन अलकन लखि घन कँहरत छोड़ि गरूर रे बुँदेलवा॥102॥