भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कजली / 62 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:34, 21 मई 2018 के समय का अवतरण

षष्ट विभेद
नवीन संशोधन

अद्धा

सुन! सुन! मदन गोपाल जसुदा के लाल।
सीख्यः ई तूंकवन कुचाल जसुदा के लाल॥
लखि बन सघन बिसाल जसुदा के लाल।
लुकः चढ़ि कदम की डाल जसुदा के लाल॥
देखतहिं बारी बृजबाल जसुदा के लाल।
धावः होइ अतिही उताल जसुदा के लाल॥
धरिकै घुँघट खोल खाल जसुदा के लाल।
लाज तजि करः देख भाल जसुदा के लाल॥
बहियाँ गरे के बीच घाल जसुदा के लाल।
चूमः हाय अधर रसाल जसुदा के लाल॥
केथुवौ के करः न खियाल जसुदा के लाल।
झकझोरि तोरः मोती माल जसुदा के लाल॥
जाय घरे कही जौ ई हाल जसुदा के लाल।
परि जाय बृज में जबाल जसुदा के लाल॥
प्रेमघन परिप्रेम जाल जसुदा के लाल।
राखः चित रचिक संभाल जसुदा के लाल॥108॥