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"कजली / 64 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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गृहस्थिनों की लय
स्थानिक स्त्री भाषा

काहे मोसे लगन लगाए रे साँवलिया॥टेक॥
लगन लगाय हाय बेदरदी, कुबजा के घर छाए रे साँवलिया॥
अस बे पीर अहीर जाति तैं, कौल करार भुलाए रे साँवलिया॥
सावन बीता कजरी आई, तैं न सुरतिया देखाए रे साँवलिया॥
झूठै प्रेम देखाय प्रेमघन, भल हमके बरसात रे साँवलिया॥111॥