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"कजली / 73 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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अन्य

तीसरे प्रकार का सप्तम विभेद
"सैय्याँ सबादेस पतंगिया औ डोर रे" की चाल

जोबनवां तोरे बड़े बरजोर रे॥
का करिहैं जानी बढ़े पर न जानी,
अबहीं तौ हैं ये उठे थोरै थोर रे।
छाती फारैं देखे, छाती पर तोरे,
नोकीले जैसे कटरिया कै कोर रे।
प्रेम कै पीर बढ़ावैं झलकतै,
हैं घनप्रेम छिपे चित्त चोर रे॥124॥