भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिन और रात / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:21, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

बीते दिन तो आए रात,
रात ढले, हो जाय प्रभात।
करते हैं सब दिन में काम,
और, रात मीन बस आराम।
[रचना : 15 मई 1996]