भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरी नाम नकेल / बालकृष्ण गर्ग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:01, 22 मई 2018 के समय का अवतरण

मचा प्लेग का शोर,
हो गई बिल्ली मौसी त्रस्त।
चूहेमल सर्वत्र घूमने –
लगे निडर, अलमस्त।
मेहरबान अल्लाह हुआ ,
जो उनका खुला नसीब।
मौसी को वे लगे चिढ़ाने –
दिखा-दिखाकर जीभ।
बिल्ली बोली- ‘प्लेग – फ्लेग तो
चार दिनों का खेल।
जल्दी ही डालूँगा बेटा,
तेरी नाक नकेल!
 [रचना: 22 दिसंबर 1995]