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कौआ बोला –‘कोयल बहिना।
इतनी मीठी बोली
कहो, कहाँ से सीखी तुमने,
‘सैकरीन’ ज्यों घोली ?’
कोयल बोली –‘भैया। होती है
मिठास जो मन में।,
वही निकलकर आती बाहर –
बोली में,जीवन में।’
[रचना: 16 सितंबर 1996]