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दिवाली पर गदहे जी ने
ऐसा गाया ‘दीपक राग’ ;
जले न दीपक, मगर हो गए
श्रोताओं के गरम दिमाग।
देख गरम माहौल, डरे वे,
कहीं हाल में लगे न आग ;
‘झुलस गया है गला, भाइयो!
-कहकर गया मंच से भाग।
[पराग, नवंबर 1983]