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घोडा काफी देरी से जब
पहुँच अपने दफ्तर,
‘रोज लेट आते हो क्यों तुम’
-घुड़का बंदर अफसर।
घोडा बोला-‘नहीं, नहीं सर!
ऐसा कभी न होता;
मैं न लेटता, कभी न लेटा,
खड़े-खड़े ही सोता’।
[बालक, जुलाई 1977]