भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नेकी की खुशबू / उषा यादव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:25, 22 मई 2018 के समय का अवतरण
फूलों में खुशबू होती है,
लगते कितने प्यारे।
जी चाहे झोली में भर लूँ।
वे सारे के सारे।
अमरूदों की खुशबू का भी
ढम-ढम बजता बाजा।
अव्वल आकर आम बना है
किन्तु फलों का राजा।
चन्दन की भीनी –सी खुशबू
सचमुच बड़ी निराली।
मन करता मैं उसको घिसकर
भर लूँ पूरी प्याली।
मेरा नन्हा –मुन्ना भइया
मुझको बहुत दुलारा।
उसको सूँघूँ तो लगता है
खुशबू का फव्वारा।
पर जो खुशबू सबसे अनुपम
सारा जग महकाती।
वह नेकी की खुशबू, उसको
दुनिया शीश नवाती।