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धनि धनि भारत की भामिनियाँ जिनकी सुजस रह्यो जग छाय।
कमला, गौरी, गिरा, शची जिहि निरखि रहीं सकुचाय॥
भईं गार्गी, मैत्रेई मुनि पत्नी मुनिन हराय।
विदुषी विशद ब्रह्म विद्या की तिय कुल मान बढ़ाय॥
अरुन्धती, अनुसूया, लोपामुद्रा पतिव्रत लाय।
सावित्री, सीता, दमयन्ती, गन्धारी बरियाय॥
सुदच्छिना, कौसिला, सुभद्रा, रुक्मिनि, दु्रपदी पाय।
बीर नारि, भट बधू, जननि, जिन गिनि को सकै बताय॥
कलि पद्मिनी पद्मिनी, कमलावती तिनहिं कुल जाय।
रूपवती, संयोगिता जगत अचरज दियो देखाय॥
कर्म्म देव, तारा, दुर्गावति कर कृपान चमकाय।
विजयिनि, रच्छिनि, देस, प्रजा, चण्डी बनि समर सुहाय॥
धन्य जवाहिर बाई, नील देवि साहस प्रगटाय।
छत्रानी रानी गन धन्य! धन्य पन्ना-सी धाय!
धर्म्मबीर द्वादस सहस्र तिय संग बिम्ब न लगाय।
विरचि चितौर चिता करनावति भसम भई न बुझाय!
रानि भवानि, अहिलया, मीरा, लछिमी बाई आय।
दया, दान वैराग्य, भक्ति बैजन्ती दियो उड़ाय॥
राज प्रबन्धि प्रजापालिनि, उपकारनि, जग दरसाय।
पति संग भसम भई तिनकी तौ कोटिन संख्या बाय॥
लज्जा, दया, धर्म, पति सेवा रत सब सहज सुभाय।
बन्दनीय ते सुमुखि प्रेमघन सबको सीस नवाय॥146॥