"चौकी बैठाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:44, 24 मई 2018 का अवतरण
होरे केवाड़ लगाय रे बनियाँ चांदो सौदागर रे।
होरे चौकी बैठावे रे दैवा सौदागर रे॥
होरे बरन-बरन चांदो चौकिया बैठावे रे।
होरे ऊपर बैठावेले रे चांदो गरूर बाहन रे॥
होरे नीचे जे बैठावेले रे चांदो मेगल पठान रे।
होरे जहाँ-जहाँ बैठावले रे चांदो निजी रखवार रे॥
होरे दुआरहाँ ठाढ़ रे दैवा गजमोती हाथी रे।
होरे माझ तो दुआरी रे दैवा खोखना बिलारीरे॥
होरे नाडा हानी छड़ोरे चाँदो खौकिया दइगे रे।
होरे सात चौकी आवेरे चाँदो देलके बैठाय रे॥
होरे चारो दिगे आवेरे चाँदी गदचिरि अयल रे॥
होरे हेमतबाड़ी डांगर लिये चौकिया जगावे रे।
होरे आंगन में आयरे चौकीदार आवे नहीं पावै रे॥
होरे जैकर जे चौकी रे पड़तो मारिगे नड़ावे रे।
होरे निद छोड़ि देले हे माता मैना बिषहरी रे॥
होरे चौकी पहरुदार रे दइबा गेल अलसाय रे।
होरे चौकी देखाये हे माता रोदना कइले रे॥