भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सारी उम्र गवानी है / उत्कर्ष अग्निहोत्री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्कर्ष अग्निहोत्री |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:26, 27 जून 2018 के समय का अवतरण

सारी उम्र गवानी है।
इक तसवीर बनानी है।

खूब सँभलकर चलना भी,
बचपन है नादानी है।

मूँह मोड़े थी किसमत पर,
हार न उसने मानी है।

दृश्टि नयी होती है बस,
बाक़ी बात पुरानी है।

बाहर से गुलज़ार है वो,
भीतर इक वीरानी है।

जितना गहरा दरिया है,
उतना मीठा पानी है।