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"ज़िन्दगी / ज्ञान प्रकाश सिंह" के अवतरणों में अंतर

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10:32, 2 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

ज़िंदगी की उलझनों में यों न गुज़रा कीजिये,
चंद लम्हे लुत्फ़-ए-क़ुदरत-ए-नज़ारा लीजिये।

उन्हें भी साँस लेने को थोड़ी जगह तो दीजिये,
हसरत-ए-दिल का गिरीबाँ यों न मसला कीजिये।

इस भरी दुनिया में केवल ग़म ही ग़म नहीं है,
जिगर के आँसुओं से गुलशन को सींचा कीजिये।

सुना नहीं पाए ग़म-ए-दिल आरज़ू उनको अगर,
दिल की ख़्वाहिशों को हँस कर भुलाया कीजिये।

रातों को नींद नहीं आती दिल बेक़रार रहता है,
उजाले में बैठ कर कुछ लम्हे बिताया कीजिये।