भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खाजा-दूध मांगे / सतीश मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह=दुभ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:38, 7 मार्च 2019 के समय का अवतरण

चानी के कटोरा निअन चान, खाजा-दूध माँगे।
अँचरा धर के ठुनके बेइमान, खाजा-दूध माँगे।
अगर सरद पूनो जानती तो घर से हम बहरइती न
अंगना में हम अइती न
दाव लगौले छलिया जानती तो सिंगार रचइती न
घूघा हम सरकइती न
चाननिआँ के हाँथे चुनरी छान, खाजा-दूध मांगे।
आगे कहलक से सुन भेली गल के हम तो रइतो
सुनऽ समझ में अइतो
सूई में तागा समा दऽ गोरी नैन-जोत बढ़ जइतो
ई रात न हरदम अइतो
धैले दुन्नों लिल्हुआ नादान, खाजा-दूध माँगे।
कहे कि अमरित आज चुएबो तूँ अप्पन मुँह फारऽ
दुन्नों हाथ पसारऽ
शालीग्राम बहरिए रहता भय-संकोच नेवारऽ
छत पर रात गुजारऽ
अहिल्या के कर के बदनाम, खाजा-दूध मांगे।
सबक सिखाऊँ, चिकरूँ, पकडूँ, गौतम भिर ले जाऊँ
कि कहना में आ जाऊँ?
मोह लेलक मन, हरलक अइसन ज्ञान कि हम घबराऊँ
का करूँ, समझ न पाऊँ
कर देऊँ कि हो जाऊँ जिआन, खाजा-दूध माँगे।
चानी के कटोरा निअन चान, खाजा-दूध माँगे।