भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संस्कार के कीड़े / सुधा चौरसिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:49, 11 जून 2019 के समय का अवतरण

जिया तुमने हजारों साल
जिस मिथकीय इतिहास में
रेंगता है खून में
वह तुम्हारे आज भी

निकल नहीं पायी
अभी तक तुम अपने
आदर्श ‘सीता’ के जाल से

बोल लेती हो बहुत
लिख भी लेती हो बहुत
पर झेलती हो अभी तक
उस भीषण आग को

मत भूलो
अभी तक हवा में
तैर रहे हैं पैर तुम्हारे
तुम्हारे पैरों के लिए अभी तक
धरती ठोस नहीं
ना ऊपर कोई आधार है

बस धधकती आग है
या फिर फटी धरती का आगोश...