"साहित्य में विकलांगता विमर्श" के अवतरणों में अंतर
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रचनाकार | ललित कुमार |
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प्रकाशक | एका (हिन्द युग्म / वेस्टलैंड पब्लिकेशन्स) |
वर्ष | 2019 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | जीवन में संघर्ष और सफलता |
विधा | संस्मरण |
पृष्ठ | 256 |
ISBN | 9388689178 |
विविध | पुस्तक अमेज़न व फ़्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। |
शुरुआत
पोलियो के साथ भारत में बीते बचपन और युवावस्था के अनुभवों पर आधारित मेरी पुस्तक है: "विटामिन ज़िन्दगी"... इस पुस्तक को लिखते समय मैंने कई बार सोचा को हमारे साहित्य में कई प्रकार के विमर्श और आंदोलन स्थापित हैं -- लेकिन इनमें से किसी में भी विकालंगता विषय पर बात नहीं होती। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में दो करोड़ 68 लाख लोग विकलांगता से प्रभावित हैं। मेरा अनुमान है कि अगली जनगणना में यह संख्या दस करोड़ से ऊपर हो जाएगी। समाज के एक इतने बड़े वर्ग के बारे में, उसकी समस्याओं के बारे में, उसके संघर्ष के बारे में कोई साहित्यिक विमर्श क्यों नहीं होता? इसी बात से प्रेरित होकर मैंने "विटामिन ज़िन्दगी" के छपने के साथ ही साहित्य में विकलांगता विमर्श को शुरु करने का एक अभियान आरम्भ किया। इसी कड़ी में हम कविता कोश में विकलांगता विमर्श का यह नया अनुभाग बना रहे हैं।
इस अनुभाग में ऐसी साहित्यिक रचनाएँ सूचीबद्ध करने की जा रही हैं जो विकलांगता को केन्द्र में रखकर लिखी गई हैं। साथ ही इस अनुभाग में हम उन रचनाकारों को भी शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे जो किसी प्रकार की विकलांगता से प्रभावित हैं। यदि आप इस श्रेणी में आने वाले रचनाकार हैं या आपने विकलांगता को केन्द्र में रखकर कोई रचना लिखी है तो इस अनुभाग से जुड़ने के लिए kavitakosh@gmail.com पर सम्पर्क करें। सम्बंधित विषयों के शोधार्थियों से भी अनुरोध है कि वे इसी ईमेल पते पर सम्पर्क करें।