भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हवा में मौत के बीज / ओमप्रकाश सारस्वत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Mukesh negi (Talk) के संपादनों को हटाकर प्रकाश बादल के अन्तिम अवतरण...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
| रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | | रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | ||
| संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत | | संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत | ||
− | }} | + | }}{{KKCatKavita}} |
<poem>एक ही कारख़ाने की गैस | <poem>एक ही कारख़ाने की गैस | ||
सारी बस्ती के नथुनों में | सारी बस्ती के नथुनों में |
12:55, 20 जून 2020 के समय का अवतरण
एक ही कारख़ाने की गैस
सारी बस्ती के नथुनों में
मौत की तरह भर गयी
रात के तारों-से
वायदा करके सोयी बस्ती
सुबह,सूरज के
स्वागत से मुकर गयी
उस दिन
भोर की घंटियों-से
पंछियों के कण्ठ नहीं बजे
कारखाने को
देवता की तरह पूजने-वाले हाथ
उत्साह से नहीं सजे
बच्चे
माओं की छातियों से
चिपक कर रोए
माँएं
बच्चों की छातियों से
पर जीवन के बोल
किसी-जिह्वा पर नहीं उगे
कारबाईड
अढ़ाई हज़ार साँसों को क्षण में
ऑक्सीज़न की तरह पी गयी
भोपाल की गैस
सैंकड़ों चंगेज़-हिटलरों के
जघन्य-अध्यायों को
मिनटों में जी गई
असफलता ने
उपलब्धि को
शर्मिन्दा कर दिया
मौन ने
मौत को
ज़िन्दा कर दिया
सारी दुनिया
हैरान थी
कि यह सब कैसे हो गया
वह कौन-सा
आततायी था
जो हवा में
मौत के बीज बो गया