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"अनैतिकता के चश्मों को / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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कहाँ तक याद रखिए —खट्टी, मीठी, कड़वी बातों को | कहाँ तक याद रखिए —खट्टी, मीठी, कड़वी बातों को | ||
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विरोधी दोस्त भी है, रोज मिलता है, इसी कारण | विरोधी दोस्त भी है, रोज मिलता है, इसी कारण | ||
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बहुत उन्मुक्त हो कर जिन्दगी जीना भी जोखिम है | बहुत उन्मुक्त हो कर जिन्दगी जीना भी जोखिम है | ||
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लड़ाई में उतर कर, भागना तो का—पुरुषता है, | लड़ाई में उतर कर, भागना तो का—पुरुषता है, | ||
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मनोविज्ञान की भाषा में अपने मन की गाँठों को | मनोविज्ञान की भाषा में अपने मन की गाँठों को | ||
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बचाना है अगर इस मुल्क की उजली विरसत को | बचाना है अगर इस मुल्क की उजली विरसत को | ||
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हमें अपनी जड़ों की ओर फिर से लौटना होगा | हमें अपनी जड़ों की ओर फिर से लौटना होगा | ||
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22:47, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
अनैतिकता के चश्मों को बदलकर देखना होगा
गलत राहों पे वो कैसे गई ये सोचना होगा
कहाँ तक याद रखिए —खट्टी, मीठी, कड़वी बातों को
हमें आगत की खतिर भी विगत को भूलना होगा
विरोधी दोस्त भी है, रोज मिलता है, इसी कारण
विरोधी के इरादों को समझना —बूझना होगा
बहुत उन्मुक्त हो कर जिन्दगी जीना भी जोखिम है
नदी की धार को अनुशासनों में बाँधना होगा
लड़ाई में उतर कर, भागना तो का—पुरुषता है,
लड़ाई में उतर कर, जीतना या हारना होगा
मनोविज्ञान की भाषा में अपने मन की गाँठों को
अकेले बंद कमरे में किसी दिन खोलना होगा
बचाना है अगर इस मुल्क की उजली विरसत को
हमें अपनी जड़ों की ओर फिर से लौटना होगा