भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ - 1 / रेखा राजवंशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:07, 28 जनवरी 2022 के समय का अवतरण
माँ उन सलाई ले
गिरे हुए फंदे उठाती है ।
मोटी लाल बिंदी में
कुछ अधिक ही
माँ नज़र आती है ।
वो बात बेबात
हंसती है, मुस्कुराती है ।
कड़कती धूप में
शीतल हवा सी
मन को सहलाती है ।
तनहा सफ़र में
साथ मेरे चलती है
मुझको समझाती है ।
कंगारूओं के देश में
अपनी उस माँ की
मुझे याद आती है ।