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"उसको घर लौट आना ही था / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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15:32, 17 दिसम्बर 2008 का अवतरण
उसको घर लौट आना ही था
घौंसले में ठिकाना ही था
कैमरा ‘फ़ेस’ करते हुए
आदतन मुस्कुराना ही था
बूढ़े तोते पढ़ें न पढ़ें
शिक्षकों को पढ़ाना ही था
तन से व्यापार करती थी जो
रूप उसका खजाना ही था
शत्रु पर वार करना भी था
और खुद को बचाना ही था
रोशनी घर में घुसते हुए
आँख को चौंधियाना ही था
मुक्ति के पक्षधर के लिए
जिन्दगी कैदखाना ही था.