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"वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं / हसरत जयपुरी" के अवतरणों में अंतर

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वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं <br>
 
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इस लिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं <br><br>
 
इस लिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं <br><br>

14:42, 8 मई 2009 का अवतरण

वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं
इस लिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं

वो पास बैठे तो आती है दिलबरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं

हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं

जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं