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"दुख, प्रेम और समय / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर

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बहुत से शब्द
 
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बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ
 
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ

15:07, 19 मई 2009 का अवतरण

साँचा:KKRachana


बहुत से शब्द
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ

बहुत बाद में समझ में आते हैं
दुख के रहस्य

ख़त्म हो जाने के बाद कोई सम्बन्ध
नए सिरे से बनने लगता है भीतर
...और प्यार नष्ट हो चुकने
टूट चुकने के बाद
पुनर्रचित करता है ख़ुद को

निरंतर पता चलती है अपनी सीमा
अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब
और अपना प्रेम कहीं बड़ा ।