भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दहलीज का पत्थर / राकेश खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: रचनाकार: राकेश खंडेलवाल Category:कविताएँ Category:राकेश खंडेलवाल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | [[Category: | + | |रचनाकार = राकेश खंडेलवाल |
− | + | }} | |
− | + | [[Category:गीत]] | |
− | + | ||
शुक्रिया, दहलीज का पत्थर मुझे तुमने बनाया<br> | शुक्रिया, दहलीज का पत्थर मुझे तुमने बनाया<br> | ||
है सुनिश्चित अब तुम्हारे पांव की रज पा सकूँगा<br><br> | है सुनिश्चित अब तुम्हारे पांव की रज पा सकूँगा<br><br> |
16:59, 24 मई 2009 के समय का अवतरण
शुक्रिया, दहलीज का पत्थर मुझे तुमने बनाया
है सुनिश्चित अब तुम्हारे पांव की रज पा सकूँगा
जब किसी देवांगना के हाथ की डलिया हिलेगी
और उसमें से छिटक कर फूल की पाँखुर गिरेगी
अर्घ्य के जल की किसी इक बूंद से स्नान होगा
और रंग कर रोलियों में एक अक्षत गिर पड़ेगा
एक पल को ही सही मैं भी बनूँगा तुम सरीखा
और तुम मुझमें बसे हो गर्व से मैं कह सकूँगा
गोपुरम पर शीश अपना कौन है बोलो झुकाता
चूम कर पेशानियों को कौन है सज़दा कराता
मैं बिछा हूँ पांव में तो शीश मुझ पर झुक रहे हैं
आपके याचक सभी अब प्यार मुझसे कर रहे हैं
द्वारका को हो गमन, या वन-गमन के कारुणिक पल
मैं प्रथम चुम्बित हुआ, ये थाति लेकर रह सकूँगा