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"इन आँखों की मस्ती के / शहरयार" के अवतरणों में अंतर

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इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं <br>
 
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं <br>
 
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं <br><br>
 
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं <br><br>

20:26, 25 मई 2009 के समय का अवतरण

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं

इक तुम ही नहीं तन्हा उलफ़त में मेरी रुसवा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं

इक सिर्फ़ हम ही मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मैख़ाने हज़ारों हैं

इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ को आँधी से डराते हो
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं


टिप्पणी:
इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।