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"हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा | मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा | ||
19:11, 24 जून 2009 का अवतरण
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरामैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा
किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँधता फिरता है मुझे घर मेरा
एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा
मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा
आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा