"आज हुई बरसात / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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18:00, 8 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
चुपके से वह निकला घर से
दिल में ख्वाहिश थी कि एक-एक सब जन के लिए
लाऊंगा खुशियाँ
बात हो चुकी थी
तय हो गया था काम मिलना
घर से निकलते ही उसके
न जाने कहाँ से आ गए बादल
होने लगी झमा-झम
मुसलाधार बारिश
गर्मी से सताई धरती लेने लगी खुलकर सांसे
चिडिया-चुनमुन चहचहाने लगे नवजीवन पाकर
चारों ओर कुदरत मुस्कुरा सी रही थी
लेकिन छूट गई थी उसकी बस
नहीं पहुँच पाया था समय पर
सो नहीं मिल पाया था उसे
वह महीनों चिरौरी कर मिला हुआ काम
बरसात ने उसे
गिरा दिया था ख़ुद की ही नजर में
एक बेरोजगार आदमी
प्रकृति से प्रेम करे तो कैसे
आज हुई थी बरसात
जिसने खुरच कर बहा दिया था उसके
सपनों को, उम्मीदों को
फिर भी आज होने वाली बरसात की
दिल से तारीफ करना चाहता है
वह भी शामिल होना चाहता है
दूसरो के सुख और संतोष में ।