भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब सामने लाएँ आईना क्या / कृश्न कुमार 'तूर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
 
अब सामने लाएँ आईना क्या  
 
अब सामने लाएँ आईना क्या  
 
हम ख़ुद को दिखाएँ आईना क्या
 
हम ख़ुद को दिखाएँ आईना क्या
पंक्ति 28: पंक्ति 26:
 
हम भी तो मिसाले-आईना हैं  
 
हम भी तो मिसाले-आईना हैं  
 
अब ‘तूर’ हटाएँ आईना क्या
 
अब ‘तूर’ हटाएँ आईना क्या
 
 
</poem>
 
</poem>

12:01, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

अब सामने लाएँ आईना क्या
हम ख़ुद को दिखाएँ आईना क्या

ये दिल है इसे तो टूटना था
दुनिया से बचाएँ आईना क्या

हम अपने आप पर फ़िदा हैं
आँखों से हटाएँ आईना क्या

इस में जो अक्स है ख़बर है
अब देखें दिखाएँ आईना क्या

क्या दहर को इज़ने-आगही दें
पत्थर को दिखाएँ आईना क्या

उस रश्क़े-क़मर से वस्ल रखें
पहलू में सुलाएँ आईना क्या

हम भी तो मिसाले-आईना हैं
अब ‘तूर’ हटाएँ आईना क्या