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"दिल को लगती है / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर

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17:53, 24 दिसम्बर 2006 का अवतरण

रचनाकार: वली मोहम्मद 'वली'

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दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बस्ती है ख़ुश-अदा की अदा

गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा

हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा

नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा

गुल हुये ग़र्क-ए-आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा

ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा