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"एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब<br>
 
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब<br>
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिशगान-ए-यार था<br><br>
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ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़गान-ए-यार था<br><br>
  
 
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू<br>
 
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू<br>
तोड़ा जो तू ने आईना तिमसाल दार था<br><br>
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तोड़ा जो तू ने आईना तिम्सालदार था<br><br>
  
 
गलियों में मेरी नाश को खेंचे फिरो कि मैं<br>
 
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जाँ दाद-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था<br><br>
 
जाँ दाद-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था<br><br>
  
मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पुछ हाल<br>
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मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल<br>
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आबदार था<br><br>
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हर ज़र्रा मिस्ले-जौहरे-तेग़ आबदार था<br><br>
  
 
कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब<br>
 
कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब<br>
देखा तो कम हुए ग़म-ए-रोज़गार था<br><br>
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देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार था<br><br>

06:07, 26 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: ग़ालिब

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एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़गान-ए-यार था

अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू
तोड़ा जो तू ने आईना तिम्सालदार था

गलियों में मेरी नाश को खेंचे फिरो कि मैं
जाँ दाद-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था

मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल
हर ज़र्रा मिस्ले-जौहरे-तेग़ आबदार था

कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब
देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार था