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"ज़िन्दगी भी अजीब है ! / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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बार-बार, कई बार परीक्षा करके देख लिया
 
बुजुर्गों के बताए जुगत भिडाये
 
बुजुर्गों के बताए जुगत भिडाये
 
 
क्या क्या जतन न किए
 
क्या क्या जतन न किए
 
 
फिर भी फिसल ही तो गई जिन्दगी
 
फिर भी फिसल ही तो गई जिन्दगी
 
 
बंद मुट्ठी की रेत मानिंद
 
बंद मुट्ठी की रेत मानिंद
 
 
और हम देखते रहे - अवाक्, अवसन्न ।
 
और हम देखते रहे - अवाक्, अवसन्न ।
 
 
खिड़की , दरवाजे खुली ही रखते थे
 
खिड़की , दरवाजे खुली ही रखते थे
 
 
कि आएगी रौशनी, हवा, धूप वगैरह
 
कि आएगी रौशनी, हवा, धूप वगैरह
 
 
कभी कभार पंछी-पखेरू भी आकर करते थे चुनमुन-चुनमुन
 
कभी कभार पंछी-पखेरू भी आकर करते थे चुनमुन-चुनमुन
 
 
खिड़की, दरवाजे खुले रखो
 
खिड़की, दरवाजे खुले रखो
 
 
मन के भी ........
 
मन के भी ........
 
 
तोते का पिंजरा, पिंजरे का तोता
 
तोते का पिंजरा, पिंजरे का तोता
 
 
और आस-पास आज़ादी की कहानियां
 
और आस-पास आज़ादी की कहानियां
 
 
तोता बाहर-भीतर करता है
 
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उसे अन्दर का मलाल है
 
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उसे बाहर का ख़याल है,
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उसे एक रस जिन्दगी से बोरियत होने जो लगी थी
 
उसे एक रस जिन्दगी से बोरियत होने जो लगी थी
 
 
पिंजरा तो पिंजरा है
 
पिंजरा तो पिंजरा है
 
 
बहुत मिलते है ........ सो उड़ गया तोता
 
बहुत मिलते है ........ सो उड़ गया तोता
 
 
हमने सोचा कि कहाँ जाएगा
 
हमने सोचा कि कहाँ जाएगा
 
 
आ ही जाएगा शाम तक
 
आ ही जाएगा शाम तक
 
 
कहा न पहले ही
 
कहा न पहले ही
 
 
सचमुच जिन्दगी बड़ी अजीब होती है
 
सचमुच जिन्दगी बड़ी अजीब होती है
 
 
तोते की भी
 
तोते की भी
 
 
हमने सोचा कि तोता सोचता नहीं
 
हमने सोचा कि तोता सोचता नहीं
 
 
सोचते तो सिर्फ हम हैं
 
सोचते तो सिर्फ हम हैं
 
 
पर तोता नहीं आया आजतक
 
पर तोता नहीं आया आजतक
 
 
गुजर गया अरसा
 
गुजर गया अरसा
 
 
हम बैठे बैठे बस इतना सोच पा रहे हैं-
 
हम बैठे बैठे बस इतना सोच पा रहे हैं-
 
 
जिन्दगी भी अजीब है
 
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चाहे हमारी या फिर तोते की !
 
चाहे हमारी या फिर तोते की !
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10:01, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

बार-बार, कई बार परीक्षा करके देख लिया
बुजुर्गों के बताए जुगत भिडाये
क्या क्या जतन न किए
फिर भी फिसल ही तो गई जिन्दगी
बंद मुट्ठी की रेत मानिंद
और हम देखते रहे - अवाक्, अवसन्न ।
खिड़की , दरवाजे खुली ही रखते थे
कि आएगी रौशनी, हवा, धूप वगैरह
कभी कभार पंछी-पखेरू भी आकर करते थे चुनमुन-चुनमुन
खिड़की, दरवाजे खुले रखो
मन के भी ........
तोते का पिंजरा, पिंजरे का तोता
और आस-पास आज़ादी की कहानियां
तोता बाहर-भीतर करता है
उसे अन्दर का मलाल है
उसे बाहर का ख़याल है,
उसे एक रस जिन्दगी से बोरियत होने जो लगी थी
पिंजरा तो पिंजरा है
बहुत मिलते है ........ सो उड़ गया तोता
हमने सोचा कि कहाँ जाएगा
आ ही जाएगा शाम तक
कहा न पहले ही
सचमुच जिन्दगी बड़ी अजीब होती है
तोते की भी
हमने सोचा कि तोता सोचता नहीं
सोचते तो सिर्फ हम हैं
पर तोता नहीं आया आजतक
गुजर गया अरसा
हम बैठे बैठे बस इतना सोच पा रहे हैं-
जिन्दगी भी अजीब है
चाहे हमारी या फिर तोते की !