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"कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं
 
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फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं
 
फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं

19:41, 13 मई 2010 का अवतरण


कहने को तो वे हमपे मेहरबान बहुत हैं
फिर भी हमारे हाल से अनजान बहुत हैं

क्या किससे पूछिए कि जहां मुँह सिये हों लोग
हैं नाम के ही शहर ये, वीरान बहुत हैं

खामोश पड़े दिल को तड़पना सीखा दिया
हम पर किसी के प्यार के अहसान बहुत हैं

वे भाँप ही लेते हैं निगाहों का हर सवाल
वैसे तो और बातों में नादान बहुत हैं

काँटों का ताज कौन पहनता है यह, गुलाब!
माना कि खेल प्यार के आसान बहुत हैं